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Siddha Kunjika Stotram | सिद्ध कुंजिका स्तोत्रम् का रहस्य, महत्व और लाभ

सिद्ध कुंजिका स्तोत्रम् | Siddha Kunjika Stotram

सिद्ध कुंजिका स्तोत्रम् एक अत्यंत प्रभावशाली और गोपनीय स्तोत्र है, जो देवी दुर्गा के चामुंडा स्वरूप की स्तुति में रचित है। यह स्तोत्र मुख्यतः रूद्रयामल तंत्र से लिया गया है और इसे श्री महाकाल भैरव ने माता चामुंडा की आराधना के लिए बताया था।

इस स्तोत्र को चंडी पाठ के समकक्ष भी माना गया है। मान्यता है कि यदि कोई व्यक्ति केवल सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का श्रद्धापूर्वक पाठ करता है, तो उसे सम्पूर्ण चंडी पाठ के फल की प्राप्ति होती है। यह स्तोत्र विशेष रूप से नवरात्रि, अशुभ प्रभावों से मुक्ति, शत्रुनाश, और सिद्धियों की प्राप्ति के लिए पढ़ा जाता है।

इस स्तोत्र के पाठ से मिलने वाले लाभ:

* सभी बाधाओं और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा

* जीवन में आत्मबल और आत्मविश्वास की वृद्धि

* तांत्रिक क्रियाओं से सुरक्षा

* आध्यात्मिक उन्नति और दिव्य कृपा की प्राप्ति

Siddha Kunjika Stotram | सिद्ध कुंजिका स्तोत्रम्

ॐ अस्य श्रीकुंजिकास्तोत्रमंत्रस्य सदाशिव ऋषिः, अनुष्टुप् छंदः,
श्रीत्रिगुणात्मिका देवता, ॐ ऐं बीजं, ॐ ह्रीं शक्तिः, ॐ क्लीं कीलकम्,
मम सर्वाभीष्टसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ।

शिव उवाच

शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ।
येन मंत्रप्रभावेण चंडीजापः शुभो भवेत् ॥ 1 ॥

न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम् ।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम् ॥ 2 ॥

कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत् ।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम् ॥ 3 ॥

गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति ।
मारणं मोहनं वश्यं स्तंभनोच्चाटनादिकम् ।
पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ॥ 4 ॥

अथ मंत्रः ।

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे ।
ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा ॥ 5 ॥

इति मंत्रः ।

नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि ।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि ॥ 6 ॥

नमस्ते शुंभहंत्र्यै च निशुंभासुरघातिनि ।
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे ॥ 7 ॥

ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका ।
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते ॥ 8 ॥

चामुंडा चंडघाती च यैकारी वरदायिनी ।
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिणि ॥ 9 ॥

धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी ।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु ॥ 10 ॥

हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जंभनादिनी ।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः ॥ 11 ॥

अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षम् ।
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा ॥ 12 ॥

पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा ।
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिं कुरुष्व मे ॥ 13 ॥

कुंजिकायै नमो नमः ।

इदं तु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे ।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति ॥ 14 ॥

यस्तु कुंजिकया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत् ।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा ॥ 15 ॥

इति श्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वतीसंवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम् ।
॥ॐ तत्सत्॥

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